"2 अक्टूबर" सन 1869 को "भारत" की धरती ने एक ऐसे "महानायक" को जन्म दिया, जिसने ने केवल भारतीय राजनीती का नक्शा बदल दिया बल्कि सम्पूर्ण विश्व को "सत्य,अहिंसा ,शांति और प्रेम की अजय" शक्ति के दर्शन करा दिए |
देश के "राष्ट्रपिता" को हम श्रदा,सन्हे और सम्मान से "बापू" कहते हे | रविन्द्र नाथ टेगौर ने इन्हें "महात्मा" का ख़िताब दिया तो "नेताजी सुभास चन्द्र बोस" ने इन्हें "राष्ट्रपिता" कहा |
अब एक छोटी सी "कविता" ............
"महात्मा गाँधी" ने एक "स्वर्णिम भारत" का सपना देखा था , लेकिन सरकार की "सामाजिक" और "आर्थिक नीतियों" में "महात्मा गाँधी" का सपना कुछ इस तरह लापता हो गया हे की भारत का 77% आम आदमी अब "20 " रूपये रोज में जिन्दा हे और इस पर भी भारत का "योजना आयोग" यह कहता हे की "गाँव" में "25" रूपये और "शहरो" में "32" रूपये रोज खर्च करने वाला आम आदमी गरीब नहीं माना जा सकता हे ...............एक आदमी था जो आम, आदमी-सा था साधारण,
पर साधारण होने पर भी था वह बहुत असाधारण।
तब परतंत्र देश भारत था जीता था अपमानों में,
गिनती अपनी कहीं न होती थी स्वतंत्र इंसानों में।
देख दुर्दशा यह स्वदेश की वह फकीर बन निकल पड़ा,
उसके पीछे-पीछे जनता का सागर भी उमड़ पड़ा।
मुड़ जाता वह जिधर, उधर ही मुड़ जाती जनता सारी,
बोल 'महात्मा गांधी की जय' कहते जाते नर-नारी।
जन-जन में उसने आज़ादी की यों ज्योति जगाई थी,
बिना तीर-तलवार तोप के उसने लड़ी लड़ाई थी।
हथियारों के बिना लड़ाई कर आज़ादी दिला गया,
सत्य अहिंसा के अस्त्रों का वह प्रयोग कर दिखा गया।
था फकीर, लेकिन लकीर का वह फकीर था कभी नहीं,
पड़ते गए जहाँ पग उसके खिंचती गई लकीर वहीं।
वह था हाड़ मांस का पुतला इसी भूमि पर जन्मा था,
वह इस युग का चमत्कार था एक अजीब करिश्मा था।
-द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी